koshish

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Tuesday, August 4, 2020

कोरोना से मेरी जंग

उस रोज की सुबह इसलिए अलग थी क्योंकि चढ़ते सूरज के साथ ही पता चला था भईया क़ी covid report positive आयी है,,यह जानने के बाद कुछ मिनट तो जैसे सन्न रह गए थे हम लोग, चुपचाप एक दूसरे के चेहरे देख रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे कि अब करना क्या है,, खैर स्तिथि से वाकिफ हुये और दिन शुरू हुआ। सबके फोन घनघनाने शुरू हो गए थे,,कभी cmo ofc से, कोविड हेल्पलाइन से, अस्पताल से, और जिसको पता चल रहा था उसके भी।


जैसे-तैसे करके आधा दिन बीता फिर एक फोन आया कि ambulance आगयी है, नीचे आजाइये,, सबसे भयानक था ये क्षण भईया को इसमें जाते देखना और हमलोग का असहाय महसूस करना। हूटर बजाकर किसी अपने को ले जाती हुई ambulance यकीन मानिए बहुत खतरनाक लगती है।


इसके बाद जैसा की अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए और नियम के अनुसार भी बाकी के हम 3 लोग (मैं, मम्मी और पापा) ने अपना टेस्ट करवाया। सब औपचारिकताएं पूरी करते सूरज ढल चुका था और street light से अब रौशनी मिल रही थी। घर आते-आते बहुत थक चुके थे हमलोग दिन भर की भागदौड़ से जिसमें तनाव व डर हावी था। अब इंतज़ार था अगले दिन आने वाली report का,, रात बीती और भोर के बाद सूरज की कुछ लालिमा आयी होगी कि 5–6 बजे के आस पास फोन आया आप तीनों लोग तैयार हो जाइए,,आपलोग को अस्पताल में शिफ्ट करना है। जी हां हम तीनों लोग की report positive आयी थी।


सोचिये चीन के वुहान शहर से चला ये कोरोना वायरस किन किन रास्तों से होता हुआ मुझ तक भी आ ही पहुंचा। मेरे साथ परिवार के 3 अन्य सदस्यों को भी इसने अपनी चपेट में ले लिया। जाहिर है covid positive होने के बाद से मन डरा हुआ था, मन में कई तरह के ख्याल भी आरहे थे पर भगवान और भगवान रूपी हमारे स्वास्थ्य कर्मियों पर भरोसा भी था।(चूकिं मेरे परिवार के सदस्य भी स्वास्थ्य विभाग में हैं)।

हमलोग भी उसी तरह ambulance में अस्पताल गए जैसे एक दिन पहले भईया, सड़क पर दौड़ती ये गाड़ी भी अनोखी है आपको पल भर में सबसे अलग बना देती है और सड़क पर चलने वाला हर शख्स जैसे झांक कर देखना चाहता है अंदर कौन है ,,किस हाल में हैं। हमलोग को भी उसी अस्पताल में शिफ्ट किया गया जिसमें एक दिन पहले भईया को लाया गया था। अब हम चारों लोग एक साथ हो गए थे और कुछ दिन में स्थिर भी हो गए। 

बीच बीच में हमें कुछ परेशानियां हुई मसलन गले में खराश, सांस फूलना, बुखार, खांसी, स्वाद व सुगंध का चले जाना और हां कुछ दवाई से मुझे एलर्जी हो गयी, जिससे शरीर मे चकत्ते के साथ itching की दिक्कत रही। ये सब वायरस का प्रभाव था जो धीरे धीरे medication से कम हो गया। ये ऊपर वाले की कृपा है कि किसी की स्तिथि गम्भीर नही हुई।


सामान्य हालत में 12 दिन अस्पताल में रहना कुछ कुछ बिगबॉस हाउस सा ही एहसास दे रहा था,, न कोई आ सकता न कोई जा सकता,,, सब कुछ समयानुसार तय है हां पर एक छूट थी अपना मोबाइल रखने की जो बिगबॉस में नही होती। टास्क के तौर पर अस्पताल में होने वाले चेकअप माने जा सकते हैं। जैसे सुबह 6 बजे ही BP, oxygen level, pulse आदि। आधी नींद में ये चेक कराना भी मशक्कत ही था। एलिमिनेशन की प्रक्रिया आपके टेस्ट में नेगेटिव आने पर पूर्ण होती। हम 3 लोग तो पहले ही राउंड में नेगटिव आकर बाहर हो गए पर मम्मी पहले दूसरे तीसरे के बाद चौथे टेस्ट में नेगेटिव आयी। इस बीच उनके हमलोग से अलग होने पर व बार बार रिपोर्ट positive आने पर जरूर हमलोग तनाव में थे।


अस्पताल के माहौल व मरीजों के मन को हल्का रखने के लिए वार्ड में म्यूजिक सिस्टम लगा था जिसपर अक्सर गाने चलते थे और PPE kit पहने देवतुल्य स्वास्थ्य कर्मी थिरकते नजर आते थे तो कभी मरीज।  इधर ,फोन मैसेज से लगातार सम्पर्क में रहे दोस्त व शुभचिंतक जिन्हें 
चिंता बनी हुई थी कि जल्दी ठीक हो जाओ उनका विशेष आभार। आपका हौसला व हिम्मत बढ़ाना  बेशक काम आया। 


अस्पताल से डिस्चार्ज होते समय अन्य मरीजों व PPE kit पहने खास लोगों ने तालियां बजाकर हमारी विदाई की। थोड़ा भावुक क्षण था ये चूंकि हम तीन लोग साथ थे और दूसरी तरफ मम्मी हम तीन से अलग। 

फिलहाल अब हमलोग घर आ चुके हैं और स्वास्थ्य हैं। क्वारंटाइन की अवधि पूरा कर रहे हैं।


वैसे कोरोना शारीरिक के साथ एक मानसिक व सामाजिक जंग भी है। इस बीमारी से हमारे शरीर में अगर कोई समस्या होगी तो उसके लिए डॉक्टर हैं जो लगातार निगरानी बनाये हैं,,, पर अपने को लेकर समाज में और खुद हमारे दिमाग में जो कोतूहल मची है उसका सामना तो स्वयं ही करना पड़ेगा और उस जगह अगर कमजोर पड़े तो हावी होने वालों की कमी नही।  

कोरोना स्पेशल संदेश –- दूर रहें, स्वस्थ्य रहें☺

Tuesday, February 4, 2014

''वापसी''


काफी अर्से बाद आज सोचा की कुछ लिखा जाए ...
लेकिन सोचा क्या लिखा जाए ....
फिर सोचा कुछ भी ऐसा जो मन को अच्छा लगे ....
फिर लगा ऐसे तो मन को बहुत कुछ अच्छा लगता है ...
तो सोचा ऐसा कुछ जो खास हो अनोखा हो...
फिर आखिरकार ये समझ आया कि....................
डायलॉग बाजी.....
लैक्चर बाजी.....
बयान बाजी .....
ये-वो... हेन-तेन
सब पढ़ने में और पढ़ाने में ही अच्छा लगता है ...
  हकीकत में एप्लाई कर दो तो...
 लाइफ for sure फालूदा बन जाए ....!!!!!!!!!
 

Sunday, May 22, 2011

GRADUATE HO GYE YAAR..............!!!!!!!!!!

एक वो कॉलेज का पहला दिन था और अब ये आखिरी....पहले दिन मन मे थोड़ी घबराहट थी और सब जानने की  उत्सुकता तो वही आखिरी दिन मन थोडा उदास आखों मे आंसू भी थे,, की अब दोस्तों से अलग हो जायेंगे  कौन पता नहीं कहा जाये... कब मिले...सारी मौज मस्ती.... सब पे.... फुल स्टॉप लग जायेगा,और अब कॉलेज आने का बहाना भी खत्म हो जायेगा... ये तो पता था की ऐसा होना है एक दिन पर जब ये हुआ तो इतनी आसानी से दिल स्वीकर नहीं  कर पा रहा था.कही न कही मन मे उथल पुथल थी की काश ये वक़्त यही ठहर जाये....... पर वो वक़्त आया भी और चला भी गया.,,,और हम देखते रह गये...इसके अलावा ख़ुशी थी इस बात की हम अब GRADUATE हो गये.... और अपनी मंजिल की तरफ जाती सीढियों का एक पायेदान और चढ़ लिए...और ज़िन्दगी की असली रूप देखने के थोड़े से और काबिल हो गये......
 कभी कभी थोड़े confuse हो जाते है की इन सब बातो पे खुश हो या दुखी...... बचपन  जहा  छुटता जा रहा है वही हम दिखावे और ढोंग की तरफ बढ़ते जा रहे है .......
जब नया नया कॉलेज ज्वाइन किया था तो कोई एक दुसरे को इतना नहीं  जनता था फिर धीरे धीरे जान पहचान बढ़ी... जान पहचान  के साथ दोस्ती बढ़ी और ये दोस्ती कब इतनी गहरी होती  गयी इसका अंदाज़ा  फ़ाइनल  इयर मे आके पता चला...बात की जाये हमारे ग्रुप की तो...hm ,,,, bhawna tewari ,,, anamta,, bhawna kapoor or pransha यही तक सिमित है  हमारा ग्रुप पर जो आपस की तगड़ी वाली  बोन्डिंग है वो है हमारे भावना tewari और anamta के बीच ही है,,,,और उम्मीद की आगे ही रहेगी...
वैसे हमारे ग्रुप को छोड़ दे तो और भी हमारे अच्छे साथी थे....जिन्होंने हमारा साथ शुरू से आखिरी तक दिया...   याद आता  है वो पल जब हमलोग क्लास बंग करके इधर उधर छुपने की जगह ढूंढा करते थे... पर ये है की मुकुल सर की क्लास कभी  बंक नहीं  की इन तीन सालो मे.. बाकी चाहे जिस भी टीचर  की की हो ...... और क्लास के पीछे डांट भी बहुत खाई... पर हम लोग भी सुधरने वाले कहा थे...... एक दिन serious हुए फिर दुसरे दिन से अपना पुराना हिसाब शुरू.... और टीचर का मजाक उड़ाना या उनकी नक़ल उतरना इस काम मे तो मानो कितनी ख़ुशी मिलती हो...
इन  तीन सालो मे कैंटीन के भी बहुत चक्कर लगाये ..आप lucknow university मे पढाई करे और आपका कैंटीन से नाता न हो ये थोडा सुनने मे अजीब लगता है... चाहे वो तोता राम की कैंटीन हो या मोटा भाई या अपनी पुरानी और टिकाऊ आर्ट्स कैंटीन ..... जहा फर्स्ट इयर मे आर्ट्स कैंटीन के दीवाने हुआ करते थे वही सेकंड और थर्ड  इयर मे आते आते तोता राम की कैंटीन की आदत लग गयी..... कैंटीन का मतलब तो बस वही cutting चाय और  गरमा गरम समोसा हुआ करता था... 
हमारे graduate होने मे हमारे डिपार्टमेंट के बाहर की सीडियों का बहुत बड़ा  योगदान टाइप का है.... पहले दिन से कॉलेज के आखिरी दिन तक हमलोग का सीडियों का मोह नहीं  छुट पाया... कई बार तो ऐसा होता था की वह बैठने के लिए या यो इंतज़ार करना पता था या तो सीडियों को घेरना पड़ता था की और कोई और न बैठ  जाये ,,,दरअसल क्या है न की वहा सीडियों पे बैठने वालो की संख्या ज्यादा होती थी....


....... अब कॉलेज की बात की जाये और crushes or flirtung की बात न की जाये तो थोडा अधुरा सा लगता है.... हमारे क्लास मे भी इन तीन सालो मे कई लोगो को कई लोगो पे बिक्कट वाले  crushes हुए.. कुछ बन गये तो कुछ टूट गए और कुछ तो शुरू होने से पहले ही खत्म हो गये.... 
वैसे तो हमारे क्लास मे इतनी unity नहीं थी पर जब ऐसी वैसी कोई बात हो जाये फिर तो बस मतलब लगता था की सब कितने अच्हे और गहरे दोस्त है.... मुझे याद है जब हाल ही मे हमारे ग्रुप पे कुछ लोगो ने कमेन्ट किया था और हमारे साथ मे लड़ाई करने के लिए काफी लोग भी खड़े हो गये थे,,,पर ऐसा कुछ हुआ नहीं...
 अब देखना है कहा तक इन यादो को सजो के रख पाते है,,,,,, उम्मीद है फिर लौटेंगे यही.!!!!!

Sunday, April 3, 2011

TREAT HO JAYE........

ओए,मैंने नया मोबाइल लिया है ... ज्यादा महंगा तो नहीं  है पर हां ठीक ठाक है ...
अरे वाह,,, फिर तो treat होनी चाहिए ... अबे कैसी treat कौन सा बहुत महंगा लिया है या अपनी मेहनत की कमाई से लिया है जो treat treat चिल्लाने लगे  ....     ये कोई बात नहीं  होती देनी तो पड़ेगी....  यार कुछ तो खिलाओ ........ हां तुम लोगो को तो बस बहाना चाहिए,फिर चाहे वो पेन की क्यों न लिया हो...,,, अच्छा  अब ज्यादा 3-5   मत करो चलो कैंटीन .............
                 ये वो पल होते है जो लगभग हर हर वो इन्सान जो student life जी चूका है,, उसकी लाइफ मे  हर तीसरे दिन आते है, treat तो जैसे आशीर्वाद की तरह है की बस बाटते चलो और लेना वाला दोनों हाथ फैलाये लेता चले....  और अगर देने वाला तैयारी के साथ आया है तब तो ठीक है वरना तो बस बैंड बजनी तय  है..... पर उन पालो की याद करके  एक हलकी सी मुस्कान भी आ ही जाती है ..... और इसी से जुडी है कुछ खट्टी और कुछ मीठी यादे ...  आइये उन  कुछ हसीन पलो पर नज़र डालते है ....  वैसे घटना तो बहुत है पर कुछ ऐसी होती है जो हमेशा के  लिए जहन मे बस जाती है.... बात है तब की जब हम bjmc 1st सेमेस्टर मे होंगे ... सबका नया नया कालेज  था नए दिन थे, दोस्ती की शुरुआत हो रही थी सबकी उस दौरान हम करीब 8 -९ लोग  थे जो की रोज़ क्लास होने के बाद कैंटीन का रुख कर देते थे .... वजह कुछ नहीं  होती थी फिर भी ,,,,रोज़ का नियम हो गया था एक के पीछे पड़ जाना और उसका खर्चा कर के ही मानना,,पर हमारा एक फ्रेंड हुआ करता था,,,, मतलब अबी भी है  पर अब उतना contact मे नहीं तो मतलब ऐसा था की हमलोग बरसे किसी पे भी,पर खर्चा  वो ही करता था.... और एक टाइम तो ऐसा आ गया की कैंटीन मे उसके 500-600 रुपये  उधार  हो गये थे,........ वो भी एक दिन हुआ करते थे पर अब वैसा कुछ नहीं है....... टाइम बदल गया है,और treat के मायने भी.....
   पर गाहे बगाहे treat हो ही जाती है.... पर वजह कुछ खास नहीं होती ,,और वक़्त की कमी भी होती है और साथ ही अनेकों परेशानिया भी होती है..........

Sunday, March 6, 2011

झुंझलाहट . . . . . . . . . . .

अक्सर ऐसा होता सभी  के साथ, की जब इन्सान अपना आपा खो बैठता है और  बेकाबू की स्थिति मे आ जाता है तो उस स्थिति को कहते है गुस्सा, पर अगर वो अपने गुस्से को निकाल नहीं  पाता तो उस स्थिति को कहते है frustation   जिसे वो उसी गुस्से  की स्थिति मे जहर के घुट की तरह पी तो जाता है पर उसे पचा नहीं पाता और फिर वही से शुरू हो जाता है उसका तिल तिल  मरना .और वो मजबूर हो जाता है मरने के लिए  ......क्यों की वो कुछ कर नहीं सकता लाख  चाह कर भी ....... और कई बार न चाहते हुए भी वो  इतना मजबूर हो के वो ऐसे काम करता है कभी कभी अनजाने मे या कभी कभी  जान बुझ के भी जो उसके लिए और उससे जुड़े लोगो क लिए बहुत कष्टकारी भी  होते है,पर मज़बूरी ये आ जाती  है की क्यों की वो कुछ कर नहीं सकता कुछ कह नहीं सकता , इस लिए उस गलत रास्ते पर चलते हुए और सब सोचते हुए भी वो सब भूल जाना चाहता है और उसे उस वक़्त वो सब काम सही लगता है  जो असल मे होता गलत है....,,,, उसका ऐसा इरादा नहीं  होता की वो अपनों को दुःख पहुचाये, पर वो इतना  कुंठित हो चूका होता है की इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं मिलता उसे ........ 
कहना  तो वो बहुत कुछ चाहता है और करना भी वो बहुत कुछ चाहता है  पर ये जो मज़बूरी होती है न वो कुछ करने नहीं देती..... क्यों की उसे कही न कही ये डर भी होता है की इसका उल्टा असर न हो जाये.... और बात कही और ज्यादा न बिगड़ जाये........ और ऐसे ही तिल तिल मर के वो अपना सब ख़तम भी कर देता है....   और सब ख़तम करने का  उसे दुःख तो होता है पर इनता सब झेलने के बाद  उस  दुःख का एहसास कम हो जाता है...... 
झुंझलाहट जिसे देखा जाये तो सिर्फ एक  शब्द है.... पर असल मे अगर आप इसकी गहराई मे जाये तो ये कितनो को बना और बिगड़ सकता है.... किसी को झुंझलाहट है कुछ न कर पाने की,,,तो किसी का डर, उसकी झुंझलाहट का कारण है....
पर इन सब का एक दूसरा पहलु ये भी है  की....   अगर वक़्त रहते किसी ने सब सम्हाल लिया या  समझ लिया तो इतना कुछ होने से बच सकता है.... इन्सान गलत रस्ते पे जाने को तब शायद मजबूर ना हो............

Monday, February 28, 2011

.अगर हम न होते तो क्या होता............

मानिए अगर हम ना होते तो क्या होता ...ज्यादा कुछ नहीं पर तब भी बहुत कुछ होता ....... कहना तो आसान है की हम न होते तो कुछ नहीं  होता सब जैसे खुश है वैसे रहते.......पर सच मानिए तो  ऐसा है नहीं .......हम न होते तो यकीन मानिये एक कमी होती हमारे घर मे ... कोई डांट खाने वाला नहीं  होता ना कोई ज्यादा बोलने वाला होता  सो जाहिर सी बात है घर सुना होता, हम ना होते तो हमारी माँ हम जैसी बेटी पाने का अनुभव ना प्राप्त कर सकती ,,, और ना ही  पिता जी हम जैसी  बेटी का सुख पा सकते और अगर बात भाई बहन की जाये तो उनलोगों के बारे मे थोडा दुविधा वाली स्थिति है हो सकता है वो बहुत खुश होते क्योंकी माँ बाप का प्यार उन्हें ही मिलता और ये भी हो सकता है की वो उतने खुश ना होते क्योंकी हम ना होते  उन्हें दुखी करने के लिए... या उनसे बाते करने के लिए ...... यकीन मानिये हमसे जुड़े खास  लोगो की ज़िन्दगी  मे उतनी हल चल ना होती........       अगर बात दोस्तों की करे तो यहाँ थोडा गेहेन सोचने जरुरत है क्यों की यहाँ मामला थोडा नाज़ुक है और मजेदार भी ..... हम ना होते दोस्तों की ज़िन्दगी मे तो ज़िन्दगी जीने का और उसका लुफ्त उठाने का दायरा कम हो जाता  ..... हमारे खास दोस्त हमसे अपनी बाते ना कहते ...... जो बेहद व्यक्तिगत होती है ....  शायद इतना ख़ुशमिज़ाजी भी ना होती.... हमारे दोस्तों के समूह  मे..... क्यों की हमारा मोबाईल भी ना होता मनोरंजन के लिए..... जो की एक एहम हिस्सा है .... 
अगर बात रिश्तेदारों की की जाये तो उन्हें खासा फर्क शायद ना पड़ता और तो वो लोग शायद खुश ही होते की चलो इतने नखरे करने  वाला कोई  सदस्य तो नहीं  है ...... पर कुछ तो थोड़े निराश भी होते ..... हमे न पाकर . ख़ैर  जो भी हो .......  सच तो तभी पता चलता जब हम न होते...!!!!!!!!!!!

Wednesday, February 16, 2011

GURU... . . . . . . .

Teacher यानि गुरु या और आसान शब्दों मे कहे  तो वो जो हमे सिखाता या समझाता है और वो जरुरी नहीं की हमारा वो स्कुल या कॉलेज का गुरु हो , वो कोई भी हो सकता है,जैसे की हमारा अपना,हमारा दूर  का रिश्तेदार  या राह चलता कोई भी शख्स..... वैसे हम कई बार खुद से भी कई चीज़े सीखते है..कई बार हमारी ज़िन्दगी ही जाने अनजाने मे  हमे बहुत कुछ सिखा जाती है पर उस वक़्त हम समझ  नही पाते. वैसे हमारी ज़िन्दगी जैसा टीचर कोई हो नही सकता क्योंकी  वो हमारे जन्म लेने से हमारी मौत तक हमारे साथ रहती है और हमे हर  पल कुछ न कुछ   सिखाती है. और साथ ही हमे ये भी सिखाती है की हमे किसी भी हाल मे कही रुकना नही चाहिए बस चलते रहना चाहिए ...........पर ये भी सच है की हमें  अहसास तब होता है उस सीख का , जब देर हो चुकी  होती है .
वैसे तो अगर गुरु की बात की जाये तो हमारे माँ बाप भी गुरु होते है जो हमारा बहुत साथ देते है ... और हमे सिखाते है,समझाते है ... ज़िन्दगी भर.
टीचर की बात करते करते , मुझे कुछ धुन्दला सा याद आ  रहा है ....... काफी पुरानी बात है जब हम 7th या,8th मे होंगे हमारी एक हिंदी की मैम हुआ करती थी जो हमे म्यूजिक भी सिखाती थी ,,,न जाने उन्हें हम मे क्या दिखता था की कोई भी छोटा बड़ा स्कूल मे function होता था तो वो हमारे पीछे ही पड़ जाती थी गाने के लिए .... और हम उतना ही उनसे भागते थे ,, और कोशिश करते थे की उनके सामने ना आ पाए.... पर वो तो टीचर थी जो हमे कही से भी ढूंड लेती थी और गाना भी ग़वा ही लेती थी ,हम बड़ा परेशान रहते थे की उन्हें कोई और क्यों नही मिलता है...... पर आज याद आती है उनकी,की एक तरह से वो अच्छा  ही करती थी .... जो हमे कुछ सिखाना चाहती थी पर हम भागते थे.
  वैसे टीचर का जिक्र आते ही ,,,,, वो क्लास रूम ,वो खौफ ,वो डांट,वो स्कूल के दिन, सब सामने आने लगता है,,.... और कुछ लोगो का चेहरा भी सामने घुमने लगता है जिससे  हम या  तो डरते थे या बहुत मानते थे ....आज वो भले हमारे साथ न हो लेकिन  उनकी  कुछ अच्छी  यादे तो कुछ कडवी यादे है जो सब याद कर के  आँखों के सामने एक जाल बना लेती है.और हमे सोचने पे मजबूर कर देती है की जो बीत गया वो पल अच्छा  था या जो वक़्त अभी है वो अच्छा  है ....................
 वक़्त चाहे जो  भी हो,हम चाहे जहाँ भी रहे, कैसे भी रहे ........... पर हमारी ज़िन्दगी हमे हर कदम पे कुछ न कुछ सिखाती रहेगी और अहसास दिलाती रहेगी की सीख़ने की कोई उम्र कोई समय नहीं होता ... बस हालात  होते है  जो सही गलत का अंदाजा कराते है....
....TEACHING IS THE PROFESSION THAT TEACHES ALL THE PROFESSIONS.